नई दिल्ली. कोरोना की वजह से पूरा देश थमा हुआ है। स्वास्थ्य का यह खतरा समाज की सबसे नीचे की कड़ी के लिए आर्थिक खतरा भी बन गया है। इसी स्थिति को देखते हुए केन्द्र सरकार ने 1.70 लाख करोड़ रुपए का प्रधानमंत्री गरीब कल्याण पैकेज जारी किया है। उधर, देशभर से मजदूरों के पलायन की दर्दनाक तस्वीरें आ रही हैं। पांच-पांच सौ किमी से भी ज्यादा पैदल चलकर ये लोग अपने घरों को लौट रहे हैं। इनकी तस्वीरों के साथ पुलिस द्वारा इन्हें पीटने के वीडियो भी वायरल हो रहे हैं। पहले कोरोना, फिर भूख और अब पुलिस की पिटाई का डर। सेहत के बाद कोरोना का असर देश के असंगठित क्षेत्र पर पड़ा है। ये वो लोग हैं, जो या तो ठेके पर काम करते हैं। या फिर मजदूर हैं, जो रोज की दिहाड़ी से अपने परिवार का पेट भरते हैं। यह असंगठित क्षेत्र कितना बड़ा है इसका सही अंदाजा सरकार को भी नहीं है।
2019 में जारी हुए इकोनॉमिक सर्वे की रिपोर्ट के अनुसार देश की कुल वर्कफोर्स में से 93 फीसदी हिस्सा असंगठित क्षेत्र का है। वहीं 2018 में नीति आयोग की एक रिपोर्ट में यह आंकड़ा 85 फीसदी है। देश की इकोनॉमी को चलाने में इस असंगठित क्षेत्र का बड़ा हाथ है। इसके बावजूद इसकी रक्षा के लिए ठोस प्रावधान नहीं हैं। पीरियॉडिक लेबर फोर्स सर्वे 2017-18 की रिपोर्ट जो कि पिछले साल जारी हुई थी, उसमें कहा गया है कि इन्फॉर्मल सेक्टर (नॉन एग्रीकल्चर) में रेगुलर/सैलरीड कर्मचारियों में भी 71% ऐसे हैं, जिनके पास लिखित में जॉब कॉन्ट्रैक्ट नहीं है। 54.2 फीसदी ऐसे हैं, जिन्हें पेड लीव नहीं मिलती। इतना ही नहीं, इसमें से 49.6 फीसदी किसी भी सामाजिक सुरक्षा योजना की योग्यता नहीं रखते। स्पष्ट है असंगठित क्षेत्र का दायरा न केवल व्यापक है बल्कि पूरी तरह असुरक्षित भी है। कृषि क्षेत्र जहां देश का सबसे बड़ा असंगठित वर्ग काम करता है उसके भी इस लॉक डाउन से प्रभावित होने की आशंका है। विशेषज्ञों से जानते हैं कि कोराेना की मार किस तरह इस वर्ग पर पड़ने जा रही है।